Thursday 13 August 2015

Hindi Shayri on Kabir Das

एक मित्र ने बहुत ही सुंदर पंक्तियां भेजी है, फारवर्ड करने से खुद को रोक नहीं पाया ....

जीभ जन्म से होती है 
और मृत्यु तक रहती है.....
क्योकि वो कोमल होती है.
दाँत जन्म के बाद में आते है 
और मृत्यु से पहले चले जाते हैं.. 
क्योकि वो कठोर होते है। 

छोटा बनके रहोगे तो 
मिलेगी हर बड़ी रहमत...
बड़ा होने पर तो 
माँ भी गोद से उतार देती है.
पानी के बिना नदी बेकार है,
     अतिथि के बिना आँगन बेकार है,
   प्रेम न हो तो सगे-सम्बन्धी बेकार है,
       पैसा न हो तो पाकेट बेकार है,
           और जीवन में गुरु न हो
               तो जीवन बेकार है,,
                इसलिए जीवन में
         "गुरु"जरुरी है.. "गुरुर" नही.ं

यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते :-

🔹नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
       बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
🔹पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज!
      कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
🔹भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
     बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
🔹मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
      बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
🔹बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
      पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
🔹पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
      मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
🔹फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
     पापी करते जागरण, मचा-मचा   कर शोर!
🔹पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
     भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!😒😒😒😒

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